सर्वदलीय Delegates की विदेश यात्रा से क्या नेताओं को मिलेगा राजनीतिक लाभ?
नई दिल्ली। पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारतीय सेना के ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और उसके बाद हुए सीजफायर को लेकर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का पक्ष मजबूती से रखने के लिए सरकार ने सर्वदलीय सांसदों को प्रतिनिधिमंडल भेजा था। वे अब लौट आया है। पीएम मोदी से मुलाकात और औपचारिकताओं के बाद अब असली सवाल यह है कि क्या इस विदेश यात्रा का इन नेताओं को कोई राजनीतिक लाभ मिलेगा? इस प्रतिनिधिमंडल में शामिल सांसदों ने एक स्वर में भारत का पक्ष दुनिया के सामने रखा। भले ही यह मिशन कूटनीतिक था, लेकिन इसके राजनीतिक अर्थ भी कम नहीं थे। एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इस दौरे में अपनी ‘राष्ट्रवादी नेता’ की छवि को मजबूती से पेश किया है, जिससे उनकी पारंपरिक मुस्लिम पहचान के इतर एक नया आयाम जुड़ गया है। हालांकि विपक्ष के नेता उन्हें अब भी बीजेपी का ‘अनकहा सहयोगी’ मानते हैं। वहीं, शिवसेना की प्रियंका चतुर्वेदी जो कभी कांग्रेस की प्रवक्ता थीं, इस मिशन में मोदी सरकार की तारीफ करते नजर आईं। उनके बदले हुए रुख को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं हो रही हैं कि क्या वे फिर से बीजेपी में जा सकती हैं? खासकर तब जब स्मृति ईरानी का प्रभाव एक तरह से खत्म हो गया है, जो पहले उनके रास्ते की दीवार थीं। वहीं कांग्रेस नेता शशि थरूर ने इस दौरे में अपनी वैश्विक छवि को और निखारा, लेकिन पार्टी के अंदर उनकी लाइन से कई नेता नाराज हैं।
थरूर का सरकार को खुफिया चूक के लिए क्लीन चिट देना और सीजफायर को अमेरिका के दबाव में न मानना, उनके कांग्रेस नेतृत्व से मतभेद को उजागर करता है। सवाल यह है कि क्या थरूर कांग्रेस छोड़कर किसी अन्य दल की राह पर बढ़ सकते हैं? डीएमके की कनिमोझी ने भी अपनी छवि को राष्ट्रीय स्तर पर पेश किया, लेकिन क्या इससे उन्हें अपनी पार्टी में वांछित राजनीतिक ऊंचाई मिलेगी? डीएमके की कमान उनके भाई स्टालिन के पास है और उत्तराधिकारी के तौर पर उदयनिधि स्टालिन को ही देखा जा रहा है। बीजेपी के रविशंकर प्रसाद मंत्री पद गंवाने के बाद वे सक्रिय राजनीति में हाशिये पर थे, लेकिन क्या अब पार्टी में उनकी वापसी किसी बड़ी भूमिका में हो सकती है? बिहार चुनाव निकट हैं और रविशंकर प्रसाद की भूमिका पर सबकी निगाहें हैं। इस विदेश यात्रा ने भले ही कई नेताओं को वैश्विक मंच पर चमकने का मौका दिया हो, लेकिन असली परीक्षा अब घरेलू राजनीति पर नजर आएगी कि कौन इस दौरे को सिर्फ ‘डिप्लोमैटिक ड्यूटी’ तक सीमित रखता है और कौन इसे ‘राजनीतिक लाभ’ में तब्दील करता है।
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