
Mobile Phone के ज्यादा इस्तेमाल से याददाश्त और सीखने की क्षमता हो रही कम
-वैस्कुलर डिमेंशिया और अल्जाइमर जैसी बीमारियों का बढ़ रहा खतरा
लंदन। करीब एक दशक लोग रोजमर्रा की जिंदगी में भी मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने लगे हैं जो हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल रहा है। इसके प्रभावों में से एक है ‘डिजिटल डिमेंशिया’ जिसमें तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। यह ज्यादा स्मार्टफोन के इस्तेमाल से दिमाग में होने वाले नकारात्मक परिवर्तनों का संचार करता है।इसमें मोबाइल फोन पर लगातार सामग्री स्क्रॉल करने, पढ़ने, देखने और इस सभी जानकारी को समझने व संसाधित करने की कोशिश के कारण याददाश्त, एकाग्रता और सीखने की क्षमता कम होना शामिल है। डिजिटल डिमेंशिया, जर्मन न्यूरोसाइंटिस्ट और मनोचिकित्सक मैनफ्रेड स्पिट्जर द्वारा 2012 में दिया हुआ शब्द है। डिजिटल डिमेंशिया का आधिकारिक तौर पर कोई निदान या इलाज नहीं है। एक अध्ययन के मुताबिक दिन में चार घंटे से ज्यादा मोबाइल स्क्रीन इस्तेमाल से वैस्कुलर डिमेंशिया और अल्जाइमर की बीमारी हो सकती है। वैस्कुलर डिमेंशिया मस्तिष्क में खून के बहाव में कमी का कारण बनता है।
यह मस्तिष्क कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाता है और उन्हें खत्म कर देता है। मोबाइल फोन के लगातार इस्तेमाल से बचने का एक तरीका नोटिफिकेशन की संख्या कम करना है। अगर कोई नोटिफिकेशन जरूरी नहीं है, तो उसे पूरी तरह से बंद कर दें। समय काटने के लिए मोबाइल सबसे आसान उपकरण बन गया है। इसके बजाय किताब पढ़ने, व्यायाम, टहलने आदि पर ध्यान दें जिससे सेहत भी बनेगी और बीमारियों से बचाव भी होगा। मोबाइल पर स्क्रीन टाइम कम करने का मकसद फोन से छुटकारा पाना नहीं है। हर रोज स्क्रॉल करने, वीडियो देखने, गेम खेलने के लिए कुछ समय ही इसका इस्तेमाल करें। डिजिटल प्रौद्योगिकी हमारे मानसिक स्वास्थ्य और संज्ञानात्मक कार्य पर किस प्रकार प्रभाव डालती है। डिमेंशिया एक व्यापक शब्द है जो मस्तिष्क में होने वाले परिवर्तनों के कारण सोचने शक्ति को कम कर देती है और स्मृति, भाषा और तर्कशक्ति को प्रभावित करती है। शोध से पता चलता है कि ज्यादा प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से डिमेंशिया जैसे परिवर्तन हो सकते हैं और संभवतः डिमेंशिया का खतरा बढ़ सकता है।
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