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  • Saturday, 15 November 2025
ट्राइग्लिसराइड्स का बढ़ा स्तर भी दिल के लिए खतरनाक: Experts

ट्राइग्लिसराइड्स का बढ़ा स्तर भी दिल के लिए खतरनाक: Experts

लंदन। नाचते, चलते या आराम करते समय अचानक दिल का दौरा पड़ने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। विशेषज्ञों ने लोगों को आगाह किया है कि केवल कोलेस्ट्रॉल नहीं, बल्कि ट्राइग्लिसराइड्स का बढ़ा स्तर भी दिल के लिए उतना ही खतरनाक साबित हो सकता है। चिकित्सकों का कहना है कि ट्राइग्लिसराइड्स एक प्रकार की वसा होती है जो शरीर में ऊर्जा के भंडारण के रूप में काम करती है। भोजन से मिलने वाली अतिरिक्त कैलोरी को शरीर फैट के रूप में जमा कर लेता है, जिसे जरूरत पड़ने पर ऊर्जा में बदला जाता है। मगर जब व्यक्ति शारीरिक रूप से निष्क्रिय रहता है, तब यही वसा शरीर में जमा होकर हार्ट अटैक, स्ट्रोक, हाई बीपी और डायबिटीज जैसी गंभीर बीमारियों को जन्म देती है। विशेषज्ञों के मुताबिक, ट्राइग्लिसराइड्स का बढ़ा स्तर न केवल हृदय को कमजोर करता है, बल्कि पैंक्रियाज में सूजन पैदा कर पैंक्रियाटाइटिस जैसी घातक बीमारी का कारण भी बन सकता है। इसके अलावा यह अथेरोस्क्लेरोसिस यानी धमनियों में वसा जमा होने की प्रक्रिया को तेज कर देता है, जिससे ब्लड फ्लो बाधित होता है और अचानक हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है। डॉक्टरों का कहना है कि जिन लोगों को डायबिटीज, थायरॉइड की समस्या या मोटापा होता है, उनमें ट्राइग्लिसराइड्स का स्तर सामान्य से कहीं अधिक पाया जाता है। धीरे-धीरे यह स्थिति हृदय की कार्यप्रणाली को प्रभावित करने लगती है।

अगर किसी व्यक्ति को चलते समय सीने में दर्द, सांस फूलना, पैरों में सूजन या लगातार थकान महसूस हो, तो यह दिल की बीमारी का संकेत हो सकता है। ऐसी स्थिति में तुरंत चिकित्सकीय सलाह लेना जरूरी है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि हृदय को स्वस्थ बनाए रखने के लिए नियमित व्यायाम, संतुलित आहार, धूम्रपान और शराब से परहेज, और पर्याप्त नींद बेहद जरूरी है। साथ ही, समय-समय पर लिपिड प्रोफाइल टेस्ट कराना चाहिए, ताकि कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स दोनों के स्तर पर नजर रखी जा सके। विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि ट्राइग्लिसराइड्स को हल्के में लेना दिल की बीमारियों का सबसे बड़ा जोखिम बन सकता है इसलिए सतर्क रहना ही सबसे बेहतर बचाव है। मालूम हो कि पिछले कुछ सालों में अचानक हार्ट अटैक और सडन कार्डियक अरेस्ट के मामलों में चौंकाने वाली बढ़ोतरी देखी गई है। पहले जहां यह समस्या उम्रदराज लोगों में आम थी, वहीं अब युवा वर्ग भी इसकी चपेट में आ रहा है।

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