भारत के लिए संकट खड़ा कर रहा 'Silent Killer' सीकेडी, 13.8 करोड़ लोग प्रभावित
वाशिंगटन। भारत के लोगों की किडनी धीरे-धीरे कमजोर होने लगती है और अपना कार्य सामान्य रूप से नहीं कर पाती, तो शरीर में हानिकारक पदार्थ जमा होने लगते हैं। इस स्थिति को क्रोनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) कहा जाता है, जिसे ‘साइलेंट किलर’ भी कहा जाता है क्योंकि शुरुआती चरण में इसके लक्षण अक्सर दिखाई नहीं देते।रिपोर्ट के अनुसार, भारत में सीकेडी का खतरा चिंताजनक गति से बढ़ रहा है। आंकड़ों के मुताबिक देश में करीब 13.8 करोड़ लोग इस बीमारी से प्रभावित हैं, जिसके चलते भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर पहुंच गया है। चीन पहले स्थान पर है, जहां 15.2 करोड़ लोग सीकेडी से जूझ रहे हैं। वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के आईएचएमई की 1990 से 2023 के बीच 204 देशों की विस्तृत स्टडी में सामने आया है कि सीकेडी अब वैश्विक स्तर पर मौत का 9वां सबसे बड़ा कारण बन चुका है। वर्ष 2023 में इस बीमारी से 15 लाख मौतें हुईं, जिनमें से 1.2 लाख भारत में दर्ज की गईं। सीकेडी में किडनी की कार्यक्षमता धीरे-धीरे कम होने लगती है और खून पहले की तरह साफ नहीं हो पाता। शुरुआती चरण में इसका पता लगाना मुश्किल होता है, लेकिन जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती है, शरीर कई संकेत देने लगता है। थकान, मतली, पैरों में सूजन, भूख कम लगना, पेशाब में बदलाव, हाई ब्लड प्रेशर, मांसपेशियों में ऐंठन और सांस फूलना इसके सामान्य लक्षण हैं। डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर सीकेडी के सबसे बड़े कारण हैं।
इसके अलावा किडनी में सूजन, पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज, बार-बार संक्रमण, पेशाब रुकना और जेनेटिक कारण भी इसके जोखिम को बढ़ाते हैं। धूम्रपान, मोटापा, बढ़ती उम्र, प्रोसेस्ड फूड का अधिक सेवन, दिल की बीमारी और किडनी को नुकसान पहुंचाने वाली दवाओं का लंबे समय तक सेवन इस खतरे को और बढ़ा देते हैं। अगर समय पर इलाज न मिले तो सीकेडी कई गंभीर समस्याओं को जन्म दे सकता है, जिनमें दिल की बीमारियां, एनीमिया, हड्डियों का कमजोर होना, इम्यून सिस्टम का नुकसान, प्रेग्नेंसी संबंधी जटिलताएं और अंत में किडनी फेल होना शामिल है। ऐसी स्थिति में मरीज को डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट की आवश्यकता पड़ सकती है।
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