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किताब से खुलासा: कविता सुनाने पर कैंप में डाल देते हैं खून और आवाज के लेते हैं Samples

किताब से खुलासा: कविता सुनाने पर कैंप में डाल देते हैं खून और आवाज के लेते हैं Samples

चीन के उइगुर मुस्लिमों पर जुल्म की कहानी जो दुनिया तक नहीं पहुंचती

बीजिंग। चीन में सरकार का मीडिया पर इतना नियंत्रण है कि अंदर की खबर बहुत ही कम दुनिया के सामने आ पाती है। चीन में बिना सरकार की इजाजत के कुछ भी प्रकाशित नहीं होता है। चीन में विदेशी पत्रकारों पर सरकार की नजर रहती है कि वह कहां जा रहे हैं। वहीं चीन उइगुरों के साथ कैसा व्यवहार कर रहा है इसका पता लगाना तो और भी मुश्किल है। पिछले कुछ सालों में अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उइगुरों के मानवाधिकारों के उल्लंघन की बहुत चर्चा हुई। चर्चा में यह बात भी सामने आई कि हान समुदाय बहुल चीन में उइगुरों कैंपों में बंद कर रखा है, जहां उन पर बहुत जुल्म किए जाते हैं। चीन सरकार के इस जुल्म से अनेक मुस्लिम उइगुरों के परिवार टूट गए हैं और जो लो कैंपों में नहीं है, उनकी सख्त निगरानी की जाती है। उइगुरों पर अत्याचार के बारे में इस समुदाय के लोग बताते हैं, जो किसी तरह से चीन से दूसरे देशों में भागने में कामयाब हो गए हैं। इसके लिए वे सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहे हैं। फिर भी चीन में उइगुरों की वास्तविक हालत क्या है और उनके साथ वहां की सरकार कैसा सलूक करती है, इसे आज भी दुनिया एक हद तक अनजान है। ताहिर हामुत इजगिल की किताब पढ़ने वाले को इससे रुबरु कराती है।

ताहिर उन खुशकिस्मत उइगुरों में हैं, जो चीन से अपने परिवार के साथ भागने में कामयाब हो गए थे और उन्होंने अमेरिका में पनाह ली। ताहिर की किताब में लिखा है चीन में उनके दोस्त दुकानदार, किताब बेचने वाले और उइगुर कविताओं के मुरीद थे। अक्सर ये लोग एक दूसरे को अपनी कविताएं सुनाते थे। ताहिर लिखते हैं कि 2016 में ऐसी ही एक बैठक में जब कविताएं सुनाई जा रही थीं, तो वहां पुलिस आ गई। पुलिस के आने पर उइगुर कवियों ने उनके चीनी पुलिसवालों के शराब मंगाई और उन्हें ऑफर की। इस शराब को मंगाने का मकसद यह संकेत देना था कि वे अच्छे नागरिक हैं। उसके बाद पुलिसवाले उन कवियों का पहचानपत्र अपने साथ ले गए। ताहिर किताब में लिखते हैं कि इस वाकये के कुछ दिनों बाद उस बैठक में शामिल उइगुर कवियों को एक-एक करके उन कैंपों में भेज दिया गया। ये कैंप उइगुरों की सांस्कृतिक पहचान मिटाने के लिए बनाए गए हैं। ताहिर इस किताब में लिखते हैं कि उस रोज बैठक में जो भी लोग शामिल हुए थे, आखिर में सिर्फ ताहिर ही बचे थे जो कैंप में भेजे जाने से पहले परिवार समेत चीन से भाग निकले।

ताहिर बताते हैं कि इन सबसे पहले जब वह युवा थे, तब भी उन्होंने तीन साल जेल और लेबर कैंप में गुजारे थे। उस वक्त उन पर देश से बाहर अवैध दस्तावेज ले जाने का आरोप लगा था। जब वह रिहा हुए तो उन्होंने फिल्म मेकिंग को अपना करियर बनाया। साथ ही साथ वह कविताएं भी लिखते रहे। लेकिन इसके बाद उइगुर किताबों को चीन की सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया। इसी दौरान ताहिर और उनकी पत्नी को एक बार पुलिस थाने बुलाया गया। वहां उनके ब्लड सैंपल लिए गए इसके बाद उन्होंने चीन से अमेरिका भागने की योजना बनाई। 2017 में वह अपने परिवार के साथ वहां जाने में कामयाब रहे।

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