राजनीतिक जीवन में सेवक ही थे प्रभात जी: Jaiprakash Rajouria
मैंने कभी कोई लेख नहीं लिखा और न ही मेरा दूर-दूर तक कोई वास्ता रहा। प्रभात जी जैसे महान व्यक्तित्व के बारे में कुछ लिखना, इसके लिए मैं बहुत असहज सा महसूस कर रहा हॅू। जिनकी कलम की ताकत का लोहा हर कोई मानता था। स्वदेश कार्यालय में जब रात्रि कलम कागज पर चलती थी, उसका असर क्या होगा, हम उस समय यह नहीं समझते थे। लेकिन उनकी लेखनी का प्रभाव प्रात:काल होते ही सारे वातावरण में साफ दिखाई देता था। प्रभात झा जी एक प्रखर लेखक थे, उनके लेखों में राष्ट्रीयता की भावना, संस्कृति की गूंज और समाज के लिए चिंता स्पष्ट झलकती है। प्रभात जी अच्छे वक्ता थे, अच्छे श्रोता थे, वे अच्छे लेखक थे तो वे अच्छे पाठक भी थे। वे कुशाभाऊ ठाकरे जी को अपना आदर्श मानते थे।
प्रभात जी से मैं अपने छात्र जीवन से ही जुड़ गया था। मैं यहां यह भी कह सकता हॅू इससे मेरे जीवन की दशा और दिशा ही बदल ही गई। उनके संपर्क में आने के कारण मेरा अक्सर स्वदेश जाना होता था, इस दौरान मुझे कभी कभी बड़े लोगों से संपर्क कराते थे। मैं बिलकुल नहीं समझ पाता था, आखिर वे बड़े लोगों से मेल जोल और संपर्क किसलिए करवा रहे हैं, यह बात मेरे लिए उस समय सोच से बाहर की बात थी। एक गुरू अपने शिष्य को कैसे गढ़ता है उसमें कितना समय लगता और कितनी मेहनत लगती है, यह शिष्य कभी नहीं समझ पाता। आज उनको इस दुनिया से अलविदा कहे एक बरस हो गया। दिल अभी भी यह मानने को तैयार नहीं है वे इस दुनिया से चले गये।
बात उन दिनों की है जब देश भर में हिन्दू स्वाभिमान के लिए एक नारा गुंजायमान हो रहा था 'बच्चा-बच्चा राम का, जन्म भूमि के काम काÓ। 6 दिसंबर 1992 को जब मैं कारसेवा कर रहा था, उस दौरान मैं घायल हो गया। मुझे लोगों ने श्रीराम अस्पताल अयोध्या में भर्ती करवाया था। प्रभात जी को इस बात की जानकारी मिली, तब वे मेरा हालचाल जानने के लिए आये। उन्होंने जब मेरे सिर पर हाथ फेरकर कहा - जयप्रकाश तुम चिन्ता नहीं करना, मैं हूूॅ। उनके इस प्यार के प्रति मेरे दिल की गइराईयों में जो भावनाएं उमड़ी, मैं उनका बखान नहीं कर सकता। वे स्वदेश के कार्य से ग्वालियर से कार द्वारा अयोध्या जाते थे, मुझसे भी मिलते थे और अपने पत्रकारिता धर्म का निर्वहन भी किया करते थे। मेरा यह कार्य ईश्वरीय कार्य है इस बात का जिक्र अक्सर किया करते थे। वे दिन हो या रात, झुलसाने वाली गर्मी हो या कड़ाके की सर्द रात, खाना खाया या नहीं, इसकी भी परवाह नहीं, काम को पूरा करना उनका एक मात्र ध्येय हुआ करता था।
ग्वालियर से भोपाल पार्टी कार्य हेतु गए तब पार्टी ने उन्हें संवाद एवं संपर्क प्रमुख का दायित्व दिया। वे कभी भी इस दायित्व के दौरान न मंच पर चढ़े और न ही अपने नाम का अखबारों में प्रकाशन करवाया। वे कहते थे कि यह दायित्व पार्टी नेतृत्व की बात आमजन तक पहुंचाने का है न कि अपना नाम और फोटो चमकाने का।एक बार वे प्रदेश अध्यक्ष के नाते प्रवास पर सड़क मार्ग से कार में सवार होकर श्योपुर जा रहे थे। लौटते में रास्ते में बहुत तेज बारिश आ गई। चूंकि उन्हें ट्रेन से सवाई माधौपुर से भोपाल के लिए जाना था। पानी रुकने का नाम नहीं ले रहा था। नदी, नाले उफान पर थे। जिस पुलिया से होकर उनको जाना था उनके सामने ही एक बाईक सवार बह गया, किन्तु अपने प्राणों की परवाह किए बगैर आगे बढ़ गये।
गरीब बेटियों की शादियां करवाना
प्रभात भाई साहब के पास जब कोई व्यक्ति यह कहता हुआ आता था कि भाई साहब मैं बहुत गरीब और तंगहाल हॅू। अपनी बेटी की शादी कैसे करूं। वे उस व्यक्ति की मदद करने के लिये आगे आ जाते थे। उस गरीब की बिटिया की शादी के खाने पीने से लेकर उसके जेवर तक की चिन्ता किया करते थे। मेरे सामने ऐसे अनेकों प्रसंग आये, जिनका साक्षी रहा।
त्यौहार के दिन अस्पताल में मरीजों से मिलना
लोग त्यौहार पर अपने परिवार के बीच रहकर त्यौहार मनाते हैं। प्रभात जी ऐसे थे महान व्यक्तित्व थे जो त्यौहार को अपने परिवार के बीच न मनाकर अस्पताल में जाकर मरीजों के बीच मनाया करते थे। मरीजों को अपने हाथों से फल देकर उनके चेहरे पर खुशी और प्रसन्नता देख, वे भी प्रसन्न हो जाते थे।
प्रभात जी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और राज्यसभा सांसद जैसे दायित्वों पर पहुंचे, तब उनका संपर्क क्षेत्र विराट हो गया। जो भी उनसे एक बार मिल ले लेता था, वह उनका होकर ही रह जाता था। प्रभात जी को देखकर कोई भी उनकी सख्यिशत का अंदाजा लगा ही नहीं सकता। वे बहुत साधारण कपड़े पहना करते, दिखावे और चमक दमक से उनका दूर दूर तक कोई नाता नहीं था। उनका चुंबकीय व्यक्तित्व था।
प्रभात झा का जन्म 6 अक्टूबर 1957 को बिहार में हुआ था। लेकिन उनकी कर्मभूमि ग्वालियर रहा। वे भाजपा कार्यालय मुखर्जी भवन को मंदिर मानते थे। इसी भाव से वे कार्यालय की अपने हाथों से सफाई भी किया करते थे। प्रभात भाई साहब ने स्नातक की शिक्षा दीक्षा के बाद पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखा। पत्रकार के रूप में उन्होंने अनेक गरीबों बेसहारों के सहारा बने, उनकी आवाज बनकर प्रशासन तक पहुंचाई, समाज में जनजागरूकता फैलाने का काम किया।
प्रभात झा केवल एक राजनेता नहीं थे, बल्कि एक विचारधारा, एक सिद्धांत और एक प्रेरणा हैं। उनके कार्य, शब्द और व्यवहार ने न केवल भारतीय जनता पार्टी को मजबूती दी, बल्कि आम जनता के दिलों में भी एक विशेष स्थान बनाया। वे शरीर से इस दुनिया में नहीं, लेकिन वे जिस भी लोक में हैं हम सब पर उनके स्नेह और आशीर्वाद की छत्रछाया होगी। उनकी पुण्यतिथि पर उनके श्रीचरणों में विनम्र श्रद्धांजलि।
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