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  • Tuesday, 02 September 2025
क्या Nawaz Sharif की कूटनीतिक कोशिश ने बचा ली शाहबाज शरीफ की कुर्सी

क्या Nawaz Sharif की कूटनीतिक कोशिश ने बचा ली शाहबाज शरीफ की कुर्सी

इस्लामाबाद। अमेरिका से सीजफायर की खबर आने से पहले ही लंदन से पूर्व पीएम नवाज शरीफ पाकिस्तान पहुंच चुके थे। परिवार से लेकर पार्टी की बैठकों तक सबसे बड़ा मुद्दा ऑपरेशन सिंदूर ही था। फिर बतौर पीएमएल-एन प्रमुख उस सरकारी मीटिंग में भी शामिल हुए, जिसमें पाकिस्तान के आर्मी चीफ आसिम मुनीर और प्रधानमंत्री और उनके छोटे भाई शहबाज शरीफ भी मौजूद थे। नवाज के पाकिस्तान पहुंचते ही खबर आई थी कि वे अपने छोटे भाई शहबाज शरीफ को समझाने बुझाने के मकसद से लौटे हैं। पाकिस्तान के तीन बार प्रधानमंत्री रह चुके नवाज शरीफ की पार्टी पीएमएल-एन की ही फिलहाल पाकिस्तान में सरकार है, और प्रधानमंत्री शरीफ उनके छोटे भाई हैं। नवाज शरीफ की बेटी मरियम नवाज पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की मुख्यमंत्री हैं। रिपोर्ट में कहा गया था, नवाज शरीफ चाहते हैं कि परमाणु हथियारों से लैस दोनों मुल्कों के बीच शांति बहाल करने के लिए पाकिस्तान की सरकार सभी संभव और उपलब्ध कूटनीतिक संसाधनों का इस्तेमाल करे। नवाज ने तभी कहा था, मैं भारत के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाने के पक्ष में नहीं हूं। अब सीजफायर के बाद ये समझना जरुरी हैं कि नवाज की कूटनीतिक कोशिशों का ज्यादा फायदा शहबाज को मिला या आसिम मुनीर को? दरअसल नवाज ने पीएम शहबाज को ‘99 जैसी फजीहत से बचा लिया है सब कुछ पानी की तरह साफ था। नवाज शरीफ अच्छी तरह जनाते थे कि पीएमएल-एन सरकार और मौजूदा प्रधानमंत्री शहबाज के सामने भी 1999 जैसी ही चुनौती खड़ी हो चुकी है। बल्कि, तब से भी कहीं ज्यादा मुश्किल। कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी फौज घुसपैठ कर चुकी थी, ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय सेना सरहद से 100 किलोमीटर पाकिस्तान के भीतर आकर आतंकवादियों के ठिकाने तबाह कर चुकी है।

लिहाजा, पहला चैलेंज यही था कि जैसे भी मुमकिन हो, हर हाल में कारगिल जैसे हालात न आने दिया जाए। कारगिल जंग में मिली फजीहत से बचा जा सके। पाकिस्तानी फौज पर तब भी राजनीतिक नेतृत्व पर हावी थी, हालात अब भी बिल्कुल वैसे ही हैं। बस आर्मी चीफ का नाम बदल कर परवेज मुशर्रफ से आसिम मुनीर हो गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंफ भले ही वाहवाही लूट ले, लेकिन तमाम कोशिशों में नवाज शरीफ की भी एक भूमिका है। नवाज शरीफ ने भाई को कारगिल वाली फजीहत से बचा ही लिया है। नवाज के कूटनीतिक चैनलों में हाथ आजमाने का नतीजा अगर सीजफायर है, तब सीधे सीधे दूसरे लाभार्थी आसिम मुनीर ही हैं। ये बात अलग है कि अमन के ऐलान के तीन घंटे में ही सीजफायर का उल्लंघन भी सामने आ गया। सीजफायर की घोषणा के बाद सरहद से हुई फायरिंग बेशक पाकिस्तानी अवाम को कुछ समझाने का एक खास तरीका हो, लेकिन तभी ये नवाज शरीफ के खिलाफ आसिम मुनीर की खुन्नस की नुमाइश भी लगती है। शहबाज शरीफ की कुर्सी मुनीर की कृपा पर ही बनी हुई है। कारगिल की शिकस्त के बाद परवेज मुशर्रफ ने तख्तापलट कर दिया था, और नवाज बेदखल करके सत्ता पर काबिज हो गए थे। लेकिन, अभी लगता है नवाज ने पीएमएल-एन की सरकार बचा ली है, छोटे भाई शहबाज शरीफ की कुर्सी भी बचा ली है, और जब तक कोई नया फौजी शासक महत्वाकांक्षी न बने, इसतरह के खतरे टल गए हैं।

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