45 साल बाद अचानक चर्चा में आया Zulfikar Ali Bhutto की फांसी का केस
-पाकिस्तान में तथ्यों को लेकर सेना-न्यायपालिका और विधायिका फिर आमने-सामने
इस्लामाबाद। पाकिस्तान में पूर्व पीएम जुल्फिकार अली भुट्टो की फांसी का केस 45 साल बाद अचानक एक बार फिर से चर्चा में आ गया है। इस बार पाकिस्तान के चीफ जस्टिस काजी फैज ईसा ने मंगलवार जुल्फिकार अली भुट्टो की विवादास्पद फांसी का जिक्र किया और कहा, यह मामला सुप्रीम कोर्ट और देश की सेना के लिए अपनी पिछली गलतियों को सुधारने और अपनी प्रतिष्ठा बहाल करने का एक अवसर हो सकता है। चीफ जस्टिस ईसा की यह टिप्पणी उनकी अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की 9 सदस्यीय बड़ी पीठ की ओर से मामले की सुनवाई के दौरान की गई। दरअसल, 1979 में जुल्फिकार अली भुट्टो को हत्या के मामले में उकसाने के लिए दोषी ठहराया गया था और फांसी की सजा दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय बेंच में चार जजों ने लाहौर हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा था, जबकि तीन ने जुल्फिकार अली भुट्टो को आरोपों से बरी कर दिया था। उसके बाद 4 अप्रैल, 1979 को जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी दे दी गई थी। हालांकि, भुट्टो का परिवार आज भी न्याय की मांग कर रहा है। कई लोगों का मानना है कि यह तत्कालीन सैन्य तानाशाह जनरल जियाउल हक के दबाव में लिया गया फैसला था, जिन्होंने 1977 में भुट्टो की सरकार को गिरा दिया था। समर्थकों ने भुट्टो की फांसी को न्यायिक हत्या करार दिया था। उन्होंने सैन्य शासक और शीर्ष अदालत पर एक निर्वाचित प्रधानमंत्री को मनगढ़ंत आरोपों पर फांसी देने के लिए मिलीभगत करने का आरोप लगाया था। शीर्ष अदालत से भुट्टो के साथ हुए अन्यायपूर्ण व्यवहार को वापस लेने की मांग की थी।
बता दें कि साल 2011 में तत्कालीन राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने भी सुप्रीम कोर्ट परामर्श अधिकार क्षेत्र के तहत अपने ससुर भुट्टो को फांसी की सजा दिए जाने के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की थी। सुनवाई के लिए यह केस मुख्य न्यायाधीश काजी फैज ईसा की पीठ के पास पहुंचा था। राष्ट्रपति संदर्भित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश ईसा ने सुनवाई की और कहा, क्या यह दोनों संस्थानों न्यायपालिका-विधायिका के लिए उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों से छुटकारा पाने का अवसर नहीं है। एक रिपोर्ट के अनुसार, मंगलवार को भुट्टो के पोते और पीपीपी अध्यक्ष बिलावल भुट्टो जरदारी, आपराधिक और संवैधानिक पक्षों में विशेषज्ञता वाले न्याय मित्र भी सुनवाई में शामिल हुए। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति संदर्भ में दिवंगत पीपीपी संस्थापक और शिकायतकर्ता अहमद रजा कसूरी के उत्तराधिकारियों को भी सुनने का फैसला किया है। सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति सैयद मंसूर अली शाह ने टिप्पणी की कि अदालत मामले की योग्यता की जांच नहीं कर सकती क्योंकि फैसला पहले ही घोषित किया जा चुका है। उन्होंने कहा कि अदालत इस बात पर गौर कर सकती है कि पूर्व पीएम को मौत की सजा कैसे दी गई।
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