संसद में Justice Verma पर महाभियोग की प्रक्रिया शुरू, 207 सांसदों का समर्थन
राज्यसभा में सभापति धनखड़ ने दी जानकारी
नई दिल्ली। दिल्ली स्थित सरकारी आवास से जले हुए नकदी नोट मिलने के मामले में घिरे इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के खिलाफ संसद में महाभियोग प्रक्रिया की शुरुआत हो गई है। संसद के मानसून सत्र के पहले ही दिन, लोकसभा में 145 और राज्यसभा में 54 सांसदों ने इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए हैं। लोकसभा अध्यक्ष बिरला और राज्यसभा के सभापति धनखड़ को सांसदों द्वारा हस्ताक्षरित ज्ञापन सौंपे जाने के बाद जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग चलाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई। संविधान के अनुच्छेद 124, 217 एवं 218 के तहत दायर इस महाभियोग प्रस्ताव को कांग्रेस, भाजपा, टीडीपी, जेडीयू, सीपीएम समेत विभिन्न दलों के सांसदों का समर्थन प्राप्त हुआ है। इस प्रस्ताव पर रविशंकर प्रसाद, अनुराग ठाकुर, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, सुप्रिया सुले, राजीव प्रताप रूडी, केसी वेणुगोपाल और पीपी चौधरी जैसे सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं। राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने इसकी जानकारी देते हुए कहा कि उन्हें न्यायमूर्ति वर्मा को हटाने की मांग वाला प्रस्ताव मिला है। यह 50 से अधिक राज्यसभा के सांसदों द्वारा हस्ताक्षरित प्रस्ताव मिला है और यदि दोनों सदनों में प्रस्ताव आता है, तो यह संसद की संपत्ति बन जाता है।
उन्होंने प्रस्ताव की पुष्टि के लिए राज्यसभा के सेक्रेटरी जनरल को आवश्यक कदम उठाने के निर्देश दिए। सभापति धनखड़ ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश, हाईकोर्ट के एक चीफ जस्टिस और एक सदस्य को लेकर तीन सदस्यीय कमेटी बनाई जाती है। उक्त कमेटी की रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद स्पीकर या चेयरमैन मोशन पर फैसला ले सकते हैं। सभापति धनखड़ ने राज्यसभा सेक्रेटरी जनरल से इस बात की पुष्टि करने के लिए कहा कि क्या यह मोशन लोकसभा में भी आया है? इस पर कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बताया, कि लोकसभा में भी सदस्यों ने स्पीकर को मोशन सौंपा है। इस बात की पुष्टि होने के साथ ही राज्यसभा के सभापति ने सेक्रेटरी जनरल को महाभियोग प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक कदम उठाने के निर्देश दे दिए। क्या कहा था जांच कमेटी ने इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त तीन सदस्यीय समिति ने जांच के बाद कहा था कि जस्टिस वर्मा और उनके परिवार का उस स्टोर रूम पर सीधा या परोक्ष नियंत्रण था, जहां 15 मार्च को आग लगने के बाद जले हुए नोट मिले थे। समिति ने इस मामले को गंभीर कदाचार माना और उन्हें पद से हटाने की सिफारिश की। हालांकि, जस्टिस वर्मा ने महाभियोग प्रस्ताव को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है और आरोपों से इनकार किया है। उन्होंने कहा कि जांच समिति ने उनके संवैधानिक अधिकारों और तथ्यों की अनदेखी की है।
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