Scientists को मिला ब्लैक होल और हो गया 20 साल पुराने रहस्य का खुलासा
वॉशिंगटन। खगोलविदों ने हमारी आकाशगंगा के बीच में एक दुर्लभ तरह के ब्लैक होल की खोज की है। यह ब्लैक होल, जिसे इंटरमीडिएट-मास ब्लैक होल कहा जाता है, आईआरएस 13 नामक एक तारा समूह के भीतर स्थित है। यह हमारी आकाशगंगा के केंद्र में स्थित सैगिटेरियस ए नामक सुपरमैसिव ब्लैक होल के बेहद करीब में स्थित है। कई वर्षों तक आईआरएस 13 स्टार क्लस्टर ने वैज्ञानिकों को हैरान कर दिया है। क्योंकि सैगिटेरियस ए के शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण खिंचाव के इतने करीब होने के बावजूद क्लस्टर के विशाल और गर्म तारे एक व्यवस्थित तरीके से चल रहे हैं। ब्लैक होल विशाल तारों के मरने से पैदा होते हैं और गैस, धूल, तारों और अन्य ब्लैक होल को खाकर बढ़ते हैं। वर्तमान में दो तरह के ब्लैक होल होते जिनके बारे में जानकारी है। पहला छोटे तारकीय द्रव्यमान वाले ब्लैक होल जो हमारे सूर्य के द्रव्यमान से कुछ गुना ज्यादा होते हैं और दूसरा सुपरमैसिव ब्लैक होल, जो सूर्य के द्रव्यमान से लाखों या अरबों गुना ज्यादा हो सकते हैं। इंटरमीडिएट मास ब्लैक होल सूर्य के द्रव्यमान से 100 से 100,000 गुना ज्यादा विशाल होते हैं।
इन्हें खोजना बेहद मुश्किल होते है। वैज्ञानिकों को इनके होने से जुड़े सबूत मिले हैं। लेकिन इनकी पुष्टि नहीं हुई है। हाल ही में एक मैग्जिन में प्रकाशित एक अध्ययन में इससे जुड़ी व्याख्या प्रकाशित हुई है। क्लस्टर का बारीकी से अध्ययन करने के बाद शोधकर्ताओं ने पाया कि तारे क्लस्टर में छिपे एक ब्लैक होल से प्रभावित हो रहे हैं। जर्मनी में कोलोन विश्वविद्यालय के खगोलशास्त्री फ्लोरियन पेइस्कर ने बताया कि जब लगभग 20 साल पहले क्लस्टर को पहली बार खोजा गया था तो ऐसा लगा था कि इसमें एक बहुत भारी तारा है। हालांकि नई हाई-रिजॉल्यूशन डेटा से पता चला है कि क्लस्टर के केंद्र में वास्तव में एक इंटरमीडिएट मास वाला ब्लैक होल है। आईआरएस 13 की संरचना की जांच करने के लिए खगोलविदों ने वेरी लार्ज टेलीक्सोप और चंद्रा एक्स-रे स्पेस टेलीस्कोप के इस्तेमाल से इसका अवलोकन किया और उन्हें स्टार क्लस्टर के गणितीय मॉडल में जोड़ा। तारों की गति क्लस्टर के केंद्र में एक खाली जगह की ओर इशारा करती है। लेकिन जब शोधकर्ताओं ने इस जगह में देखा, तो उन्होंने आयनित गैस की रिंग से निकलने वाली एक्स-रे का पता लगाया। यह ब्लैकहोल की अभिवृद्धि डिस्क का सबूत है। गणना के आधार पर पता चला है कि यह हमारे सूर्य के द्रव्यमान से 30 हजार गुना ज्यादा है।
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