
Masood Azhar मामले में पाकिस्तान ने फिर झाड़ा पल्ला, बिलावल बोले- मसूद पाकिस्तान में नहीं
इस्लामाबाद। भारत के मोस्ट वांटेड आतंकी और जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को लेकर पाकिस्तान ने एक बार फिर जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने की कोशिश की है। पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री और पीपीपी प्रमुख बिलावल भुट्टो जरदारी ने एक साक्षात्कार के दौरान दावा किया कि मसूद अजहर पाकिस्तान में नहीं है और उसे गिरफ्तार करने के लिए इस्लामाबाद को भारत की ओर से ठोस सबूत चाहिए। गौरतलब है कि वैश्विक मंच पर पाकिस्तान की छवि दुनियाभर के आतंकवादियों को पालने और संरक्षण देने वाली रही है। इस बात के सबूत भी समय-समय पर मिलते रहे हैं। जहां तक बात मसूद अजहर की है तो भारत में कई बड़े हमलों से इसका नाम जुड़ा रहा है। जानकारी अनुसार मसूद अजहर का नाम भारत में जिन वीभत्स आतंकी हमलों के साथ जुड़ा रहा उनमें 2001 का संसद हमला, 2008 का 26/11 मुंबई हमला, 2016 का पठानकोट एयरबेस हमला और 2019 का पुलवामा आत्मघाती हमला, जिसमें 40 से अधिक सीआरपीएफ जवान शहीद हुए थे। उक्त घटनाओं के कारण संयुक्त राष्ट्र ने 2019 में मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित कर दिया था। ऑपरेशन सिंदूर से मिले सबूत हाल ही में भारतीय सेना ने जैश-ए-मोहम्मद के खिलाफ एक गोपनीय सैन्य अभियान ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को अंजाम दिया, जिसमें मसूद अजहर के परिवार के 10 सदस्य और उसके चार करीबी साथी मारे गए थे।
यह कार्रवाई पाकिस्तान अधिकृत क्षेत्र में स्थित जैश के ठिकानों पर की गई थी। अब ऐसे में जब बिलावल भुट्टो कहते हैं कि पाकिस्तान को नहीं पता मसूद कहां है। तो यह हास्यास्पद प्रतीत होता है। बिलावल ने क्या कहा पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ने कहा, कि मसूद अजहर पाकिस्तान में नहीं है। भारत के पास यदि कोई ठोस जानकारी है, तो उसे साझा करे, हम गिरफ्तार करेंगे। इसके साथ ही वो कहते हैं कि भारत के पास कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है। मसूद के अफगानिस्तान में होने की अधिक संभावना है। उन्होंने यह भी कहा कि हाफ़िज़ सईद पाकिस्तान में सरकारी हिरासत में है, और यह तथ्य भारत को स्वीकार करना चाहिए। बिलावल भुट्टो ने मसूद के अफगान जिहाद से पुराने संबंधों का हवाला देते हुए कहा कि वह संभवतः अफगानिस्तान में छिपा हुआ है। जानकारों की मानें तो बिलावल का यह बयान अंतरराष्ट्रीय दबाव से बचने की रणनीति भी हो सकती है। बिलावल भुट्टो का यह बयान पाकिस्तान की परंपरागत रणनीति को ही उजागर करता है, जब भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दबाव बढ़ता है, आतंकियों की मौजूदगी से इनकार कर देना। भारत और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह समझना होगा कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई केवल सैन्य मोर्चे की नहीं, राजनयिक और वैचारिक स्तर पर भी सख्त रवैये की मांग करती है।
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