Dark Mode
  • Saturday, 21 September 2024
इंसानी दिमाग के टिशू से पहला लिविंग Computer बनाने का दावा

इंसानी दिमाग के टिशू से पहला लिविंग Computer बनाने का दावा

दुनिया की ऊर्जा की समस्या का निकल सकेगा हल!

स्टॉकहोम। वैज्ञानिकों ने इंसान के दिमाग की टिशू से ही दुनिया का पहला लिविंग कंप्यूटर बनाने का दावा किया है। ये बिलकुल कंप्यूटर चिप की तरह सूचनाओं का आदान प्रदान करते हैं, लेकिन उसके लिए 10 लाख गुना कम ऊर्जा का उपयोग करते हैं। वैज्ञानिकों का दावा है कि अगर दुनिया में इस तरह से कंप्यूटिंग का इस्तेमाल होने लगे तो हमारा ऊर्जा संकट हल हो जाएगा। तकनीक को लेकर दुनिया भर की कंपनियां और विश्वविद्यालय पड़ताल करने लगे हैं।यह लैब में तैयार की गईं दिमागी कोशिकाओं जैसे 16 ऑर्गेनॉइड्स से बना है जो आपस में एक दूसरे को सूचना भेजते हैं। ये दिमाग की तरह अपने न्यूरॉन्स से संकेत भेजते हैं और सर्किट की तरह काम करते हैं। खास बात यह है कि वे आज के डिजिटल प्रोसेस की तुलना में दस लाख गुना कम ऊर्जा का उपयोग करते हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि जिन कामों के लिए हमारा दिमाग 10 से 20 वाट की ऊर्जा खाता है, उसी के लिए अभी के कम्प्यूटर (21 मेगावाट) 2.1 करोड़ वाट ऊर्जा का इस्तेमाल करते हैं।

यह अनोखा आविष्कार बायोलॉजिकल न्यूरल नेटवर्क के समाधान बनाने वाली स्वीडन की कंपनी फाइनल स्पार्क के वैज्ञानिकों ने किया है।मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कंपनी के सीईऐओ डॉ फ्रेड जॉर्डन ने बताया कि यह विचार विज्ञान फंतासी जैसा लगता है, लेकिन अभी तक इस पर अधिक शोध नहीं हुआ है। ऑर्गनोइड्स स्टेम से बने होते हैं जो खुद की ही देखभाल कर सकते हैं। 0.5 मिमी मोटे इन मिनी ब्रेन को करीब दस हजार जिंदा न्यूरॉन्स से बनाया गया है। शोधकर्ताओं ने इसे वेटवेयर नाम भी दे दिया है, क्योंकि यह असल इंसानी दिमाग की तरह काम करता है। जहां दुनिया अभी अक्षय ऊर्जा के स्रोत खोज रही है और भविष्य में ऊर्जा संकट की आहट को साफ महसूस कर रही है। कम ऊर्जा खाने वाले कम्प्यूटर की मांग बहुत ज्यादा हो जाएगी। दुनिया की कई कंपनियां और विश्वविद्यालय फाइनल स्पार्क के संपर्क में है।इस जीवित कंप्यूटर में रहने वाली कोशिकाएं या सेल्स 100 दिन तक जिंदा रहती हैं, लेकिन उनकी जगह नए ऑर्गनॉइड ले सकते हैं।

Comment / Reply From

You May Also Like

Newsletter

Subscribe to our mailing list to get the new updates!