Mobile और इंटरनेट में खो रहे बच्चे
तकनीक के इस युग में मोबाइल और इंटरनेट के कारण बच्चों की दुनियां भी इसी में खोती जा रही है। इससे उनके सामाजिक कौशल में भी कमी आ रही है। यहां तक कि छोट-छोटे बच्चे भी मोबाइल, टैबलेट व कंप्यूटर में इस कदर खो जाते हैं कि खुद को आसपास के माहौल से अलग कर लेते हैं। इसका असर उनके मानसिक और शारीरिक विकास पर पड़ता है। इससे ये बच्चे घर से बाहर मैदान में खेलने जाने से भी कतराते हैं। इसके अलावा पहले जहां बच्चे आसपास के बच्चों के साथ मिलते थे मिलजुलकर खेलते थे वह भी आजकल देखने में नहीं आ रहा है। इससे बच्चों की आंखें भी कमजोर होती जा रहीं हैं और उन्हें बचपन से ही चश्मा लगाना पड़ रहा है। वहीं जानकारों का मानना है कि बच्चों में स्मार्टफोन, टैबलेट, आईपैड व लैपटॉप के रूप में स्क्रीन एडिक्शन लगातार बढ़ रहा है और भविष्य में इसका बुरा असर पड़ने वाला है।
मोबाइल रेडियेशन से उनके मस्तिष्क पर भी दीर्घकालिक प्रभाव पड़ने की आशंकाएं हैं।इसका असर बच्चों को अपने भावों को नियंत्रित करने की क्षमता पर पड़ सकता है और यह स्वस्थ संचार, सामाजिक संबंधों तथा रचनात्मक खेलों को प्रभावित कर सकता है।
दो साल तक के बच्चों द्वारा किसी भी प्रकार के स्क्रीन मीडिया और स्क्रीन पर बिताए गए समय को जानकार गलत बताते हैं। मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि मानवीय संबंधों की कीमत पर स्क्रीन का इस्तेमाल बच्चों में सामाजिक-संचार कौशल तथा पारिवारिक कर्तव्यों को प्रभावित कर सकता है। हाल में खुलासा हुआ है कि स्क्रीन एडिक्शन से बच्चों में विभिन्न प्रकार के संज्ञानात्मक दोष हो सकते हैं। स्क्रीन एडिक्शन से बच्चों में ऑस्टिन स्पेक्ट्रम विकार (एएसडी) होने का भी खतरा होता है। स्क्रीन एडिक्शन से बच्चों में भाषा तथा बोलने की प्रक्रिया के विकास में भी बाधा आ सकती है। स्क्रीन एडिक्शन के कारण कई बच्चों में हमने बोलने में हुई परेशानी को देखा है। इसलिए अगर आप चाहते हैं कि आपके बच्चे सेहतमंद हों तो मोबाइल की लत से उन्हें बचायें।
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