Vidhu Vinod Chopra ने शादियों की वजहों से भी बटोरीं है सुर्खियां
मुंबई। बॉलीवुड में कामयाब फिल्म मेकर की फेहरिस्त में एक नाम खास मुकाम रखता है और वो है विधु विनोद चोपड़ा का। विधु विनोद चोपड़ा एक लेखक, निर्माता, निर्देशक, संपादक, गीतकार और अभिनेता हैं। जिन्होंने भारतीय सिनेमा को कई कामयाब फिल्मों से नवाजा है, इसमें ‘मुन्ना भाई एमबीबीएस’, ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ ‘पीके’, ‘3 इडियट्स’ और ‘संजू’ जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्में शामिल हैं। अपनी फिल्मों के अलावा विधु विनोद चोपड़ा ने शादी की वजहों से भी सुर्खियां बटोरीं। उनकी तीन शादियां हुई। उनकी पहली पत्नी संपादक रेणु सलूजा थीं, जिनसे बाद में उनका तलाक हो गया। इसके बाद उन्होंने दूसरी शादी फिल्म निर्माता शबनम सुखदेव के साथ की। मगर ये शादी भी लंबे समय तक नहीं टिकी और दोनों अलग हो गए। उन्होंने तीसरी शादी फिल्म समीक्षक अनुपमा चोपड़ा से की हैं। दोनों के दो बच्चे हैं।
विधु विनोद चोपड़ा का जन्म 5 सितंबर 1952 को श्रीनगर के एक पंजाबी हिंदू परिवार में हुआ। उनके पिता डीएन चोपड़ा, फिल्म निर्माता रामानंद सागर के सौतेले भाई थे। फिल्मी बैकग्राउंड वाले परिवार से होने के बावजूद उन्हें भी शुरुआती दिनों में संघर्ष करना पड़ा। साल 1976 में उन्होंने शॉर्ट फिल्म “मर्डर एट मंकी हिल” को डायरेक्ट किया। इसके लिए उन्होंने राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और सर्वश्रेष्ठ छात्र फिल्म के लिए गुरुदत्त मेमोरियल पुरस्कार जीता। फिर तो विधु विनोद चोपड़ा ने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा। उन्होंने 1985 में अपनी प्रोडक्शन कंपनी विनोद चोपड़ा फिल्म्स की स्थापना की। जिसमें परिंदा (1989), 1942: ए लव स्टोरी (1994) जैसी क्लासिक फिल्में बनाई गई। फिल्म 1942: ए लव स्टोरी ने 40वें फिल्मफेयर पुरस्कारों में कुल नौ अवॉर्ड जीते। उनकी अगली दो फिल्में, करीब और मिशन कश्मीर भी सफल रहीं।
विधु विनोद चोपड़ा ने फिल्म डायरेक्ट राजकुमार हिरानी के साथ मिलकर पांच फिल्में बनाई। इसमें मुन्ना भाई एमबीबीएस, लगे रहो मुन्ना भाई, 3 इडियट्स, पीके और संजू थी। जिसने बॉक्स ऑफिस पर कामयाबी के नए रिकॉर्ड बनाए। उनकी तीन फिल्मों ने राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी जीते। साल 2023 में आई फिल्म 12वीं फेल को भी दर्शकों का काफी प्यार मिला। बता दें कि फिल्म बनाना वाकई एक मुश्किल काम है, लेकिन जब एक फिल्म मेकर ठान लेता है तो उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती तब आती है, जब फिल्म दर्शकों के बीच पहुंचती है। इन चुनौतियों को पार पाकर ही एक फिल्म मेकर कामयाबी की सीढ़ियों तक पहुंच पाता है।
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