
Mauganj में युवक को छुड़ाने गई पुलिस टीम पर हमला, एएसआई की मौत
कानून के रखवाले ही सुरक्षित नहीं! छतरपुर, शहडोल, इंदौर में भी हो चुके हैं हमले
रीवा। मध्य प्रदेश के मऊगंज में एक युवक को कुछ लोगों ने बंधक बनाकर उसकी जमकर पिटाई कर रहे थे। जब पुलिस टीम उसे छुड़ाने पहुंची तो भीड़ ने पुलिस पर ही जानलेवा हमला कर दिया। इस हमले में एक एएसआई की मौत हो गई और तहसीलदार समेत कई अन्य पुलिसकर्मी घायल हो गए। दुर्भाग्यवश, जिस युवक को बचाने पुलिस गई थी, उसकी भी मौत हो गई। मध्य प्रदेश के मऊगंज जिले का गड़रा गांव में एक ऐसी दर्दनाक घटना घटी जिसने कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। शनिवार को इस छोटे से गांव में हिंसा की ऐसी आग भड़की कि एक युवक और एक पुलिस अधिकारी को अपनी जान गंवानी पड़ी, जबकि कई अन्य पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल हो हुए हैं। मऊगंज में एक आदिवासी परिवार और एक ब्राह्मण युवक के बीच विवाद हो गया, जो देखते ही देखते सामुदायिक संघर्ष में बदल गया। जब पुलिस ने हस्तक्षेप करने की कोशिश की, तो हालात और बेकाबू हो गए। पथराव, मारपीट और हिंसा के नंगे नाच ने पूरे इलाके को हिला कर रख दिया। मध्य प्रदेश में पुलिसकर्मियों पर हमले की बढ़ती घटनाएं सवाल खड़े कर रही है। हाल ही में मऊगंज जिले के गदरा गांव में हुई दिल दहला देने वाली घटना इसका ताजा उदाहरण है। अपहरण की सूचना पर पहुंची पुलिस टीम पर भीड़ ने न सिर्फ पथराव किया, बल्कि हमला भी कर दिया जिसमें एक एएसआई और एक आम नागरिक की मौत हो गई। यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले मध्यप्रदेश में ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं।
बता दें पिछले साल छतरपुर में थाने पर हमला हो या खरगोन में अवैध शराब के खिलाफ कार्रवाई में पुलिस पर प्रहार। इस तरह ग्वालियर में जुए की सूचना पर बदमाश ने एएसआई का सिर फोड़ दिया। भिंड में भी माफिया पुलिसवालों पर हमला कर देते हैं। इससे पहले शहडोल में भी ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं। ये घटनाएं बताती हैं कि प्रदेश में कानून के रखवाले ही महफूज नहीं हैं रक्षा करने वालों को ही निशाना बनाया जा रहा है। इन घटनाओं से अपराधियों दुस्साहस बढ़ता ही जा रहा है। मऊगंज जैसी घटनाएं बताती हैं कि लोग पुलिस को अपने खिलाफ मानते हैं, खासकर तब जब मामला उनके निजी या सामुदायिक हितों से जुड़ा होता है, लेकिन क्या यह गुस्सा जायज है? पुलिस अगर अपहरण जैसे अपराध को रोकने की कोशिश कर रही है, तो उस पर हमला करना कहां तक सही है? पुलिसकर्मी भी इंसान हैं। मऊगंज में एक एएसआई की मौत और पिछले साल छतरपुर में घायल जवानों की खबरें बताती हैं कि पुलिस का काम जोखिम भरा है। फिर भी, उनके पास सीमित संसाधन और कई बार अपर्याप्त प्रशिक्षण होता है। मध्य प्रदेश में पुलिस पर हमले सिर्फ अपराध की घटनाएं नहीं, बल्कि एक बड़ी सामाजिक बीमारी का लक्षण हैं। यह बीमारी है अविश्वास, अशिक्षा और हिंसा को हल मानने की मानसिकता। इसे ठीक करने के लिए पुलिस को संवेदनशीलता का संतुलन बनाना होगा।
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