Muslim countries की यूरोप को धमकी, नीतियां हम बनाएंगे, हमारे नियम हम तय करेंगे
कतर ने धमकी ही नहीं दी बल्कि यूरोप के सुपर पावर मानसिकता को भी तोड़ा
कतर। कतर जो एक छोटा सा देश है लेकिन उसने पूरे यूरोप के सामने वह कर दिखाया जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। कतर ने सिर्फ धमकी नहीं दी बल्कि यूरोप की उस सुपर पावर मानसिकता को भी तोड़ दिया जो सदियों से दुनिया को नियमों से बांधने की कोशिश कर रही थी। पश्चिमी देशों की सोच बहुत साफ है। कानून हम बनाएंगे और बाकी दुनिया उसे मानेगी। चाहे वो मानवाधिकार का मुद्दा हो, पर्यावरण नीति हो या फिर डाटा सुरक्षा हमेशा यही पैटर्न रहा है और वे खुद को नैतिक शिक्षक समझते हैं और बाकी देशों को छात्र। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस बार यूरोप ने जो कानून बनाया वो उनके अहंकार को दर्शाता है। इस कानून का नाम है कॉर्पोरेट सस्टेनेबिलिटी ड्यू डिलीजेंस डायरेक्टिव यानी कि सीएसडी। एक ऐसा नियम जो अब पूरी दुनिया के देशों के ऊपर यूरोप का नैतिक शिकंजा कसने की कोशिश कर रहा था। यूरोप ने संकेत दिया है कि वह अपने ईएसजी नियमों को लेकर अंतरराष्ट्रीय चिंताओं को ध्यान में रखने को तैयार है, क्योंकि यूरोप को अमेरिका और कतर से ख़तरे का सामना करना पड़ रहा है। यह टिप्पणी यूरोपीय संघ के कॉर्पोरेट स्थिरता रिपोर्टिंग और उचित परिश्रम संबंधी निर्देशों को निशाना बनाकर की गई शिकायतों की बौछार के बाद आई है। हालांकि दोनों निर्देशों को वापस लेने की प्रक्रिया चल रही है, फिर भी ये यूरोपीय संघ के बाहर की कंपनियों पर लागू होंगे, अगर वे यूरोपीय संघ के अंदर कारोबार करती हैं। सीएसआरडी और सीएसडीडीडी यूरोपीय संघ के उन व्यापक उपायों का हिस्सा हैं जिन्हें हाल के वर्षों में अपनी अर्थव्यवस्था को हरित बनाने और यह तय करने के लिए अपनाया गया है कि कॉर्पोरेट मूल्य श्रृंखलाएं मानवाधिकार मानकों का अनुपालन करें।
सीएसडीडीडी विशेष रूप से विवादास्पद साबित हो रहा है। इसका उद्देश्य कंपनियों को जलवायु परिवर्तन योजनाएं प्रस्तुत करने के लिए बाध्य करना है। यह उन पर दंड का भी खतरा पैदा करता है यदि वे अपनी मूल्य श्रृंखलाओं में मानवाधिकारों के उल्लंघन को संबोधित करने में विफल रहते हैं। सोशल मीडिया एक्स पर हाल ही में एक पोस्ट में कतर के ऊर्जा मामलों के मंत्री महामहिम साद बिन शेरिदा अल-काबी ने कहा कि अगर सीएसडीडीडी में संशोधन नहीं किया गया या उसे रद्द नहीं किया तो हम यूरोप को एलएनजी नहीं भेजेंगे, यह तय है। पिछले महीने 16 राज्यों के अटॉर्नी जनरल ने मेटा प्लेटफॉर्म्स इंक समेत कई कंपनियों को पत्र भेजकर कहा कि वे यूरोप की जलवायु और डीईआई आवश्यकताओं की अनदेखी करें। कतर ने साफ कहा कि हम तुम्हारे कानून से नहीं अपने संसाधनों से बात करेंगे और यह बयान यूरोप के लिए तगड़ा झटका था क्योंकि यूरोप का करीब 40फीसदी एलएनजी अब भी मिडिल ईस्ट से आता है और उसमें सबसे बड़ा हिस्सा कतर का है। अब आप सोचिए यह वही मुद्दा है जिस पर भारत सालों से बोल रहा था। भारत हमेशा कहता है कि पश्चिमी देश जब चाहे अपने मोरल कार्ड निकाल देते हैं। कभी पर्यावरण के नाम पर भारत के उद्योगों को रोकते हैं। कभी मानवाधिकार के नाम पर, हमारी संपत्तियों पर, हमारी कंपनियों पर उंगली उठाते हैं। भारत का संदेश हमेशा स्पष्ट रहा। हमारी नीतियां हम बनाएंगे। हमारे नियम हम तय करेंगे।
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