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  • Friday, 22 November 2024
नई पीढ़ी को भारतीय समृद्ध संस्कृति से परिचित कराएँ: Governor Shri Patel

नई पीढ़ी को भारतीय समृद्ध संस्कृति से परिचित कराएँ: Governor Shri Patel

राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय के 17वे स्थापना दिवस समारोह को किया वर्चुअल संबोधित

संगीत साधना व तपस्या है – विधानसभा अध्यक्ष तोमर

ग्वालियर/ राज्यपाल एवं कुलाध्यक्ष मंगुभाई पटेल ने कहा कि नई पीढ़ी के लिये अनुभवों से सीखकर भावी लक्ष्य प्राप्त करने का समय है। साथ ही भारतीय परंपरा व समृद्ध संस्कृति के बारे में आने वाली पीढ़ी को अवगत कराने का दायित्व भी है, जिससे नई पीढ़ी हमारी गौरवशाली परंपरा से परिचित हो सके। राज्यपाल श्री पटेल राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय का 17 वें स्थापना दिवस समारोह को वर्चुअल संबोधित कर रहे थे। राज्यपाल श्री पटेल ने कार्यक्रम की वर्चुअल अध्यक्षता की। यहाँ विश्वविद्यालय में मुख्य अतिथि के रूप में विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर एवं बतौर विशिष्ट अतिथि राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) संस्कृति, पयर्टन, धामिर्क न्यास एवं धमर्स्व विभाग धर्मेन्द्र सिंह लोधी व देश की सुविख्यात संगीतज्ञ एवं लोक गायिका पद्मश्री प्रो. मालिनी अवस्थी भी मौजूद थीं। यहाँ विश्वविद्यालय में आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलगुरू प्रो. पण्डित साहित्य कुमार नाहर ने की।


स्थापना दिवस समारोह को संबोधित करते हुए राज्यपाल श्री पटेल ने कहा कि भारतीय परंपरा व संगीत की समृद्ध परंपराओं के लिए विख्यात ग्वालियर की धरती पर स्थित यह प्रदेश का संगीत एवं कला का एकमात्र विश्वविद्यालय है। निजी गतिविधियों के लिए क्रिएटिव सिटी नेटवर्क की यूनेस्को सूची में शामिल ग्वालियर की दुनियाभर में सांस्कृतिक शहर के रूप में विशेष पहचान है। संगीत सम्राट तानसेन, बैजू बावरा, राजा मानिसंह तोमर जैसे महान संगीत साधकों व कला के महारथियों की भूमि ग्वालियर को कला साधक संगीत का तीर्थ भी मानते हैं। आज का दिन विवि की गौरवशाली परंपराआओं व उपलब्धियों को याद करने का अवसर है। समारोह के मुख्य अतिथि विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि व्यक्ति हो या संस्था उसके जीवन में जन्मदिन का स्थान महत्वपूर्ण होता है। जीवन में जैसे शिक्षा, रोजगार जरूरी है वैसे ही संगीत का हमारे जीवन में अनमोल स्थान है। संगीत एक साधना है, तपस्या है, जिसे गुरू- शिष्य परंपरा के तहत ही सफलतापूर्वक प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने कहा हमारे देश में संगीत के माध्यम से ईश्वर की साधना की जाती है। श्री तोमर ने विश्वविद्यालय के विकास के लिए हर संभव सहयोग करने का भरोसा दिलाया। राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार धर्मेन्द्र लोधी ने कहा कि वैदिक काल से ही संगीत का बड़ा महत्व रहा है। संगीत का आधार नाद है। उन्होने कहा कि संगीत की कोई भाषा नहीं होती न ही संगीत को किसी सीमा में बांधा जा सकता है। उन्होने कहा कि संगीत की नगरी ग्वालियर राजा मानसिंह व संगीत सम्राट तानसेन जैसे ब्रम्हनाद के शीर्षस्थ साधकों की धरती है। साथ ही भरोसा दिलाया कि संगीत विश्वविद्यालय के विकास में सरकार कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी।


विश्वविद्यालय के कुलगुरू प्रो. साहित्य कुमार नाहर ने स्वागत भाषण दिया। उन्होंने कहा कि संगीत और कला हमारे जीवन का अहम हिस्सा है। बच्चों को शुरूआत से ही संगीत और कला की शिक्षा देनी चाहिए, ताकि जब पौधा बड़ा होकर वृक्ष बने तो उसमें हमारी संस्कृति की झलक दिख सके। साथ ही कहा कि ग्वालियर की सांस्कृतिक विरासत को सहेजने की जरूरत है। कायर्क्रम में विवि की भावी कुलपति प्रो. स्मिता सहस्त्रबुद्धे, श्रीयुत श्रीधर पराड़कर, यशवंत इंदापुरकर, अशोक आनंद, चंद्रप्रताप सिकरवार, अतुल अधौलिया व अनीत करकरे आदि उपस्थित थे।इस दौरान  कुलसचिव प्रो. राकेश कुशवाह ने विश्वविद्यालय का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। विश्वविद्यालय की विवरणिका व डा. पारूल दीक्षित द्वारा लिखित पुस्तक का विमोचन भी इस अवसर पर किया गया। साथ ही विवि के उत्कृष्ट कमर्चारियों को सम्मानित किया गया। कायर्क्रम के प्रारंभ में अतिथियों द्वारा तानसेन इंस्टीट्यूट ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट के स्थानीय कायार्लय का उद्घाटन विश्वविद्यालय परिसर में किया गया। साथ ही ललित कला एवं फैशन विभाग के छात्र- छात्राओं द्वारा लगाई गई कला प्रदशर्नी का अवलोकन भी किया। कायर्क्रम का संचालन सांस्कृतिक समिति की अध्यक्ष डॉ. पारूल दीक्षित ने किया।

पद्मश्री मालिनी अवस्थी के लोक गायन ने किया मंत्रमुग्ध
रियाज ऐसा करें कि बिना माइक व साउंड के भी आपकी आवाज़ की गूंज सुनाई दे

स्थापना दिवस समारोह में देश व दुनिया की सुविख्यात संगीतज्ञ और लोक गायिका पद्मश्री प्रो. मालिनी अवस्थी का लोक गायन सबसे बड़े आकर्षण का केन्द्र रहा। उन्होंने इस अवसर पर कहा कि संगीत अनमोल है, उसे समझने की जरूरत है। हर कलाकार के लिए ग्वालियर तीर्थ के समान है। यहां आकर अपने पूवर्जों के चरणों की रज को माथे से लगाने का अहसास बहुत अलग है। उन्होंने कहा की संगीत में रियाज ऐसा करें कि बिना माइक, साउंड के भी आपकी आवाज़ की गूंज सुनाई दे।उन्होंने अपनी प्रस्तुति की शुरूआत बनारस की ठुमरी से की, जिसे ताल जत 16 मात्रा, राग मिश्र देश में प्रस्तुत किया, जिसके बोल थे “मोरा सैयां बुलावे आधी रात को...”। इसके बाद एक और ठुमरी को राग खमाज, ताल अध्धा में पेश किया। इसके बाद दादरा की राग मिश्र खमाज में शानदार प्रस्तुति दी। जिसके बोल थे “भीज जाऊंगी पिया बचाए...”। उन्होंने गया के रामू जी की बंदिश भी पेश की जिसके बोल थे “तोरी मोरी मोरी तोरी...”। इसके बाद कजरी शैली में ठुमरी पेश की जिसके बोल थे “तरसे न जीया हमार...”। इसी क्रम में दोहे की कजरी प्रस्तुत की जिसके बोल थे “आए न बिहारी सांवरिया...”। उनके साथ तबले पर नई दिल्ली से आए पं. रामकुमार मिश्र ने और हरमोनियम पर लखनऊ से आए पं. धमर्नाथ मिश्र ने संगत की। सुरूचि और अदिति ने तानपुरे पर संगति की।

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