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AC को लेकर मोदी सरकार का क्या नया नियम, इस खबर में जान लें

AC को लेकर मोदी सरकार का क्या नया नियम, इस खबर में जान लें

नई दिल्ली। जैसे-जैसे भारत में गर्मी अपने चरम पर पहुंच रही है, देश के कई हिस्सों में पारा 50 डिग्री के पास पहुंच चुका है। इसके बाद एयर कंडीशनर (एसी) अब केवल आराम का साधन नहीं, बल्कि जीवन की जरूरत बन गए हैं। लेकिन एसी के अत्याधिक और अनियंत्रित उपयोग से ऊर्जा संकट, बिजली बिल में वृद्धि और पर्यावरणीय असंतुलन जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं। यह देखकर भारत सरकार अब एसी के तापमान को लेकर नया मानक लागू करने की तैयारी में है। भारत सरकार ने 2025-26 से सरकारी कार्यालयों में 20-28 डिग्री सेल्सियस की सीमा तय करने की योजना बनाई है। प्रस्ताव के अनुसार, एसी का न्यूनतम तापमान 24-26 डिग्री सेल्सियस तक सीमित किया जा सकता है, जो ऊर्जा संरक्षण और पर्यावरण सुरक्षा दोनों की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है। क्यों है जरूरत इस नियम की ? दरअसल ऊर्जा मंत्रालय के अनुसार, यदि एसी का तापमान 1 डिग्री सेल्सियस बढ़ाया जाए, 6 प्रतिशत तक बिजली की बचत हो सकती है। इससे बिजली बिल में 15-18 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है। अगर यह नीति व्यापक रूप से लागू होती है, तब 2050 तक 20 करोड़ टन कार्बन उत्सर्जन कम किया जा सकता है, जो वैश्विक जलवायु लक्ष्य की दिशा में बड़ा कदम होगा।

वहीं 18-21 डिग्री सेल्सियस जैसे कम तापमान शरीर के लिए असामान्य हैं और इससे सर्दी, जुकाम, सांस की समस्या, और इम्युनिटी में गिरावट आ सकती हैं। 24-26 डिग्री का तापमान अधिक स्वास्थ्य-सुरक्षित और आरामदायक माना जाता है। देश में 2024 में उत्तर और मध्य भारत में 15-20 प्रतिशत की वृद्धि हुई। जबकि बिहार, ओडिशा जैसे राज्यों में 25-30 प्रतिशत तक वृद्धि हुई है। देश में केवल आज 10 प्रतिशत घरों में एसी की पहुंच, जबकि चीन में 68 प्रतिशत है। साथ ही, एसी की कीमतों में 3-5 प्रतिशत तक की वृद्धि और इनवर्टर टेक्नोलॉजी की ओर रुझान भी देखा जा रहा है। इस तकनीक से तापमान स्वतः नियंत्रित होता है, जिससे ऊर्जा की बचत होती है। भारत में भीषण गर्मी, बढ़ती बिजली मांग और पर्यावरणीय दबाव को देखते हुए एसी के तापमान पर मानक तय करना समय की मांग है। जापान, इटली और स्पेन जैसे देशों के अनुभव से सीख लेकर भारत 24-26 डिग्री सेल्सियस को आदर्श मानक बनाकर ऊर्जा सुरक्षा, पर्यावरण संरक्षण और स्वास्थ्य तीनों मोर्चों पर बेहतर स्थिति पा सकता है। यह कदम नीति, विज्ञान और समाज के बीच संतुलन की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। अब देखना है कि 2025-26 में प्रस्तावित यह नियम कितनी प्रभावी रूप से लागू हो पाता है और जनता इसे कितनी गंभीरता से अपनाती है।

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