
ALS के इलाज में मिली बड़ी सफलता
वॉशिंगटन। जानलेवा बीमारी एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस (एएलएस) के उपचार के लिए एक नई दवा उलेफनेर्सन (जिसे पहले जैकीफ्यूसेन के नाम से जाना जाता था) के परीक्षण से कुछ मरीजों में चौंकाने वाला सुधार देखा गया है। अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. नील श्नाइडर और उनकी टीम ने इस नई दवा का परीक्षण ऐसे 12 मरीजों पर किया, जिन्हें एएलएस की एक खास और दुर्लभ किस्म थी। इस प्रकार की एएलएस ‘एफयूएस’ नामक जीन में खराबी के कारण होती है और यह आमतौर पर युवाओं या किशोरों में तेजी से बढ़ती है। इस परीक्षण के नतीजे काफी उत्साहजनक रहे। एक महिला मरीज, जो 2020 में इस दवा का हिस्सा बनी, पहले चलने में असमर्थ थी और वेंटिलेटर पर निर्भर थी। अब वह बिना सहारे चल सकती है और सांस लेने में भी किसी उपकरण की जरूरत नहीं है। वहीं एक 35 वर्षीय पुरुष मरीज में, जिसमें बीमारी के शुरुआती लक्षण भी नहीं थे लेकिन मांसपेशियों में कमजोरी के संकेत मिले थे, उसे लगातार तीन साल से यह दवा दी जा रही है और अब तक उसमें कोई भी लक्षण विकसित नहीं हुए हैं। इस दवा का असर सिर्फ लक्षणों पर नहीं, बल्कि शरीर में हो रहे अंदरूनी नुकसान पर भी पड़ा है। छह महीने की दवा के बाद मरीजों के शरीर में मौजूद न्यूरोफिलामेंट लाइट नामक प्रोटीन का स्तर 83 प्रतिशत तक घट गया, जो नसों को हो रहे नुकसान का संकेतक माना जाता है।
यह साफ दर्शाता है कि दवा ने प्रभावी ढंग से काम किया। हालांकि सभी मरीजों को इसका समान लाभ नहीं मिला, लेकिन कई मामलों में बीमारी की गति धीमी हुई और जीवन प्रत्याशा में सुधार आया। वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर सही समय पर उपचार शुरू किया जाए और लक्षित थेरेपी दी जाए, तो न सिर्फ बीमारी की रफ्तार रोकी जा सकती है बल्कि कुछ हद तक नुकसान को पलटना भी संभव है। अब इस दवा को वैश्विक स्तर पर बड़े पैमाने पर परीक्षण के लिए आगे बढ़ाया जा रहा है। बता दें कि एएलएस एक प्रोग्रेसिव न्यूरोलॉजिकल बीमारी है, जिसमें दिमाग और रीढ़ की हड्डी की मोटर नसें धीरे-धीरे काम करना बंद कर देती हैं। इससे मरीजों की मांसपेशियां कमजोर होती जाती हैं, जिससे चलना, बोलना और यहां तक कि सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है। यह बीमारी आमतौर पर लाइलाज मानी जाती है और इससे पीड़ित लोगों की जीवन प्रत्याशा बहुत कम होती है।
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